प्रश्न : – राज्य सरकार में राज्यपाल की भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए ।

उत्तर : – भारतसंघ की इकाइयाँ दो वर्गो में बँटी है-

1. राज्य और 2 . केन्द्रशासित क्षेत्र । राज्यों की कार्यपालिका का प्रमुख राज्यपाल होता है । राज्य की कार्यपालिका -शक्ति राज्यपाल में निहित है जो उसका प्रयोग संविधान के अनुसार या अपने अधीनस्थ पदाधिकारियों के द्वारा करता है । चूँकि राज्य की कार्यपालिका संघीय कार्यपालिका की तरह संसदीय है , इसलिए राज्य में केवल औपचारिक एवं नाम की कार्यपालिका – शक्ति है , वास्तविक कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद करती है ।

राज्यपाल की नियुक्ति : – भारत में राज्यपाल की नियक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है । व्यवहार में यह नियुक्ति केन्द्रीय मंत्रिमंडल के द्वारा ही की जा सकती है । कारण , राष्ट्रपति राज्यपाल की नियुक्ति मंत्रिमंडल के द्वारा के परामर्श से ही करता है । राज्यपाल की नियुक्ति करने के पूर्व सम्बद्ध राज्य के मुख्य का परामर्श भी लिया जाता है । सामान्यतः राज्यपाल की नियुक्ति पाँच वर्षों के लिए होती है , परन्तु प्राविधिकी दृष्टि से वह राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त अपने पद पर रहता है । अर्थात् राष्ट्रपति जब चाहे , उसे पद से हटा सकता है । राज्यपाल पाँच वर्ष की अवधि के बाद भी अपने पद पर तब तक कायम रहता है जब तक उसका उत्तराधिकारी नियुक्त न हो जाए । राज्यपाल अपनी अवधि के अन्तर्गत भी राष्ट्रपति के पास अपना त्यागपत्र देकर पदत्याग कर सकता है ।

राज्यपाल नियुक्त होने के लिए अर्हताएँ और शर्तें : –

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 157 यह नियुक्त करता है कि राज्यपाल के पद पर वही व्यक्ति नियुक्त हो सकता है जो भारत का नागरिक हो और जिसकी आयु पैंतीस वर्ष से कम न हो । संविधान के अनुच्छेद 158 के अनुसार राज्यपाल संसद या किसी राज्य के विधानमण्डल के सदस्य नहीं हो सकता और यदि ऐसा सदस्य राज्यपाल नियुक्त होता है तो उसके ( राज्यपाल ) पद ग्रहण के साथ ही उसकी संसद् या विधानमण्डल की सदस्यता का अन्त हो जाएगा । राज्यपाल अपने कार्यकाल में कोई अन्य लाभ का पद भी ग्रहण नहीं कर सकता है ।

राज्यपाल के कृत्य और अधिकार : –

राज्यपाल राज्य का सांविधानिक अक्ष्यक्ष है । राज्य के क्षेत्र में उसके कृत्य सामान्यतः वे ही हैं जो संघीय क्षेत्र में राष्ट्रपति के हैं । अनंतर केवल इतना ही है कि राज्यपाल को सेना और कूटनीतिक कृत्य एवं आपातकालीन शक्तियाँ प्राप्त नहीं है । हम अध्ययन की सरलता के लिए उसके कृत्यों एवं अधिकारों को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत रख सकते हैं ।

1. प्रशासनिक शक्तियाँ : –

संविधान के अनुच्छेद 154 के अनुसार राज्य की समस्त कार्यपालिका – शक्ति राज्यपाल में निहित है और संविधान के अनुच्छेद 166 के अनुसार , राज्य के समस्त कार्य उसी के नाम से संचालित होते हैं । राज्यपाल राज्य के शासन कार्य के संचालन एवं मंत्रियों के बीच कार्य- . वितरण हेतु नियम बनाता है । संविधान का अनुच्छेद 163 यह नियुक्त करता है कि राज्यपाल को प्रशासनकार्य में सहायता एवं मन्त्रणा देने के लिए मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होगा । अनुच्छेद 164 के अनुसार , राज्यपाल हो मुख्यमंत्री को नियुक्त करता है और मुख्यमंत्री के परामर्श से अन्य मंत्रियों को भी । अनुच्छेद 165 के अनुसार मंत्रियों को पदच्युत करने का भी अधिकार राज्यपाल को है । उदाहरण के लिए , 17 अगस्त , 1967 को पंजाब के राज्यपाल श्री गाडगिल ने वहाँ के राजस्व मंत्री वीरेन्द्र सिंह को अधिकारों के दुरुपयोग के पदच्युत कर दिया था । मंत्रिगण राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त अपने पद पर रहते हैं । परंतु , यह शक्ति केवल औपचारिक है । व्यवहार में राज्यपाल विधानसभा के बहुमत दल के नेता को ही मुख्यमंत्री नियुक्त करता है और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री राज्यपाल की औपचारिक स्वीकृति से करता है । सभी मंत्री तब तक अपने पद पर बने रहते हैं जब तक उन्हें विधानमण्डल के बहुमत दल का विश्वास प्राप्त रहता है । राज्यपाल राज्य के अधिवक्ता , लोकसेवा आयोग के सदस्य आदि महत्वपूर्ण पदाधिकारियों की नियुक्ति करता है । किन्तु व्यवहारिक दृष्टि से इन नियुक्तियों में मुख्यमंत्री और मंत्रिमण्डल का ही निर्णय प्रधान होता है । राज्यपाल को मुख्यमंत्री से प्रशासन – सम्बन्धी समस्त कार्यों एवं मंत्रिमण्डल के निर्णयों की सूचना प्राप्त करने का अधिकार है । यदि राज्य का शासन संविधान की व्यवस्थाओं के अनुसार न चले तो राज्यपाल उसकी सूचना राष्ट्रपति को देता है । यदि राष्ट्रपति उस सूचना के आधार पर आपातकाल की घोषणा करे तो राज्यपाल केन्द्र की अभिकर्ता के रूप में राज्य का शासन चला सकता है ।

2. विधायी शक्तियाँ : –

राज्यपाल को कतिपय विधायी शक्तियाँ भी प्राप्त है । वह विधानपरिषद के कुछ सदस्यों को नामजद करता है । यदि उसे यह विश्वास हो जाए कि विधानसभा में आंग्ल – भारतीय समुदाय का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं हुआ है तो वह उस समुदाय के एक प्रतिनिधि को विधानसभा . का सदस्य नामजद कर सकता है । वह विधानमंण्डल को विघटित भी कर सकता है । वह प्रत्येक वर्ष विधानमण्डल की प्रथम बैठक में भाषण देता है और समय – समय पर विधेयक के सम्बन्ध में संदेश भी भेज सकता है । वह विधानमण्डल का आवश्यक अंग होता है । राज्य के विधानमण्डल के द्वारा पारित कोई विधेयक तब तक कानून नहीं जनता जब तक उस पर राज्यपाल की स्वीकृति नहीं मिल जाए । परंतु , विधानमण्डल द्वारा पारित वित्त विधेयक पर प्रथम बार ही उसे अपनी स्वीकृति देनी पड़ती है । वह धन या वित्त विधेयक को छोड़कर अन्य विधेयकों पर अपनी अनुमति नहीं भी दे सकता है , न उन्हें राष्ट्रपति के विचारार्थ भेज सकता है अथवा विधानमण्डल के पास पुनर्विचारार्थ भेज सकता है । यदि लौटाया हुआ विधेयक संशोधन सहित या बिना संशोधन के पुन : पारित हो जाए तो उस पर राज्यपाल को अपनी स्वीकृति देनी पड़ेगी । शब्द के संकीर्ण अर्थ में , राज्यपाल का एकमात्र विधायी अधिकार विधानमण्डल के अवकाश के समय अध्यादेश जारी करना है । ये अध्यादेश यदि पहले ही रद्द न कर दिए जाएँ या वापस न ले लिए गए तो विधानमण्डल की बैठक आरंभ होने के छह सप्ताह बाद तक लागू रहेंगे । जिन विषयों में राज्य के विधानमण्डल राष्ट्रपति की स्वीकृति के बिना कानून नहीं बना सकते , उन विषयों पर राज्यपाल राष्ट्रपति की आज्ञा के बिना अध्यादेश भी जारी नहीं कर सकता ।

3. वित्तीय शक्तियाँ : –

प्रत्येक वर्ष वित्तीय विवरण तैयार करना और उसे विधानमण्डल के समक्ष रखवाना राज्यपाल का कार्य है । राज्यपाल की सिफारिश के बिना कोई धन विधेयक विधानसभा में पुन : स्थापित नहीं किया जा सकता । राज्यपाल की स्वीकृत के बिना राज्य के राजस्वों की कोई भी राशि व्यय नहीं की जा सकती । राज्यपाल अतिरिक्त व्यय की पूर्ति हेतु अनुपूरक अनुदान की माँग भी उपस्थित करा सकता है । राज्य की आकस्मिक निधि पर राज्यपाल का अधिकार होता है और वह उसमें से अप्रत्याशित व्यय के लिए धन दे सकता है , परंतु इस प्रकार की राशि का बाद में विधानसभा द्वारा पारित होना आवश्यक है ।

4. न्यायिक शक्तियाँ : –

राज्यपाल को कतिपय न्यायिक शक्तियाँ भी प्राप्त हैं । राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति में राज्यपाल का परामर्श लिया जाता है । वह राज्य के उच्च न्यायालय के कर्मचारियों की सेवा की शर्तें भी बना सकता है । वह दण्डित अपराधियों को क्षमा अथवा उनके दण्ड में परिवर्तन अथवा कमी कर सकता है , यदि उनका अपराध राज्य सरकार के क्षेत्रान्तर्गत हो ।

.5 . अन्य कार्य : –

राज्यपाल राज्य लोकसेवा आयोग का वार्षिक प्रतिवेदन प्राप्त करता है और उसे समीक्षा के लिए मंत्रिपरिषद के पास भेजता है । मंत्रिपरिषद की समीक्षा प्राप्त होने पर उसे वह विधानसभा के अध्यक्ष के पास भेजता है । राज्य के आय – व्यय के बारे में महालेखापाल के प्रतिवेदन को भी राज्य इसी प्रकार निपटाता है । राज्यपाल विश्वविद्यालयों का भी कुलाधिपति होता है ।

राज्यपाल की वास्तविक स्थिति : –

राज्यपाल की सांविधानिक स्थिति के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है । राज्यपाल केन्द्र का प्रतिनिधि होता है । संविधान ने उसे स्वविवेकी अधिकार भी प्रदान किया है और चूँकि राज्यों में भी उत्तरदायी तथा संसदीय शासन की स्थापना की गई है , अतः राज्यपाल राज्यशासन के लिए सांविधानिक प्रधान है । संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार , स्वविवेकी शक्तियों का विशेष उत्तरदायित्वों को छोड़कर राज्यपाल को प्रशासन कार्य में सहायता एवं मन्त्रणा देने के लए मंत्रिपरिषद होती है जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होता है । इस प्रकार , राज्य वैधानिक प्रमुख के रूप में आचरण करता है और वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद के हाथों में रहती है तथा राज्यपाल की वही स्थिति हैं जो केन्द्र में राष्ट्रपति की है । राज्यपाल का पद सम्मान तथा प्रतिष्ठा का है , वास्तविक शक्ति का नहीं ।