भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं ।

उत्तर : – राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अँग्रेज इस बात की . अच्छी तरह समझ गए कि अब अधिक दिनों तक भारत को गुलाम बनाए रखना असंभव है । इसलिए उनलोगों ने सत्ता हस्तांतरित करने एवं भारत को स्वतंत्र करने का निश्चय किया । द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् इंगलैंड में होनेवाले चुनावों में ‘ लेबर पार्टी ‘ बहुमत में आई । इसके प्रधानमंत्री एटली ने सत्ता हस्तांतरण की शर्तो पर बातचीत करने के लिए ‘ कैबिनेट मिशन ‘ मार्च , 1946 ई ० में भारत भेजा । इस योजना के अनुसार भारत के लिए एक भावी संविधान तैयार करने और ‘ अंतरिम सरकार ‘ स्थापित करने की व्यवस्था की गई । इसके अनुसार संविधान सभा ( Constituent Assembly ) के निर्माण के लिए जुलाई , 1946 ई ० में निर्वाचन करवाए गए । इसने संविधान के निर्माण का जिम्मा लिया । इसकी पहली बैठक 9 दिसंबर , 1946 ई ० को हुई जिसकी अध्यक्षता सदन के सबसे बुजुर्ग सदस्य डॉ ० सच्चिदानंद सिन्हा ने की । बाद में डॉ ० राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए । 21 फरवरी , 1948 ई ० को संविधान का प्रारूप तैयार हुआ और अध्यक्ष की हैसियत से डॉ ० राजेंद्र प्रसाद ने 26 नवंबर , 1949 ई ० को इसपर हस्ताक्षर किए । मूल रूप से इस संविधान में 395 धाराएँ , जो 22 भागों में विभक्त थीं , और 8 अनुसूचियाँ थीं । 26 जनवरी , 1950 ई ० से यह संविधान लागू किया गया ।

संविधान की प्रमुख विशेषताएँ ( Sailent Features of the Constitution ) heading

संविधान की प्रस्तावना ( The Preamble of the Constitution ) ‌

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में संविधान के स्त्रोत , प्रशासनिक व्यवस्था और संविधान के उद्देश्यों को स्पष्ट रूप में रखा गया है । भारतीय संविधान की तरह इसकी प्रस्तावना भी लंबी है । इसमें कहा गया है – हम भारत के लोग , भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न ( धर्मनिरपेक्ष , समाजवादी ) , लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को ,

न्याय – सामाजिक , आर्थिक राजनीतिक , स्वतंत्रता – विचार की अभिव्यक्ति की , विश्वास की , धर्म एवं पूजा की ,
न्याय – सामाजिक , आर्थिक राजनीतिक ,।
स्वतंत्रता- विचार की अभिव्यक्ति की , विश्वास की , धर्म एवं पूजा की ,
समानता – प्रतिष्ठा एवं अवसर की क्षमता प्राप्त कराने के लिए तथा में , उन सब में,

भातृत्व – जिसमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता सुनिश्चित रहे , का वधन करने के लिए । इस संविधान सभा में आज 26 नवंबर , 1949 ई ० को इसके द्वारा इस संविधान को स्वीकार करते हैं , कानून के रूप देते हैं और अपने आपको इस संविधान को अर्पण करते हैं ।

इस प्रस्तावना से स्पष्ट हो जाता है कि इस संविधान का निर्माण भारत की जनता द्वारा , भारत की जनता के लिए किया गया । अब भारत एक सर्वप्रभुत्व संपन्न देश बन गया । इस संविधान का उद्देश्य भारत में धर्मनिरपेक्ष , समाजवादी , लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना करना और सबको न्याय , स्वतंत्रता एवं समानता प्रदान करना तथा बंधुत्व की भावना का विकास करना है । संविधान की मूल प्रस्तावना में ‘ धर्मनिरपेक्ष समाजवादी , ‘ राष्ट्र की अखंडता ‘ जैसे शब्द नहीं थे , इन्हें 42 वें संशोधन ( नवंबर , 1976 ) के द्वारा जोड़ा गया । भारतीय संविधान की प्रस्तावना संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से मिलती – जुलती है । चीन और जापान के संविधानों में भी यह बात स्पष्ट की गई है कि इनका निर्माण जनता द्वारा , जनता के लिए किया गया है ।

लिखित एवं निर्मित संविधान ( Written and Enacted Constitution ) :-

विश्व के अनेक देशों की तरह ही जैसे रूस , अमेरिका , फ्रांस , चीन , जापान इत्यादि – भारतीय संविधान भी लिखित है । इंगलैंड के संविधान की तरह यह परंपरा ( Convention ) पर आधारित नहीं है । संविधान सभा के अधिवेशनों में इसका प्रारूप तैयार कर , उसपर विचार – विमर्श कर इसे अंतिम तौर से स्वीकार किया गया । मूल रूप से इसमें 395 धाराएँ , 22 भाग और 8 अनुच्छेद थे । इस संविधान में स्पष्ट रूप से प्रशासनिक व्यवस्था , मूल अधिकारों , राज्य की नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख किया गया है । संविधान के संशोधन की व्यवस्था , कार्यपालिका , व्यवस्थापिका , न्यायपालिका के अधिकार सभी की चर्चा है । अतः , कोई भी सरकार इस संविधान में रहते मनमाने ढंग से शासन नहीं चला सकती है । लिखित होने के बावजूद इस संविधान में अनेक अलिखित परंपराओं को भी स्थान मिल चुका है जिनका महत्व लिखित व्यवस्था के ही समान है । इसी प्रकार यद्यपि इस संविधान का निर्माण तीन वर्षों की अवधि में पूरा हुआ परंतु इसके विकास को 1858 ई ० के पश्चात् के संविधानों एवं राजनीतिक घटनाओं से भी प्रभावित किया ।

संविधान की विशालता ( Vastness of the Constitution ) : –

भारतीय संविधान की एक विशेषता इसकी विशालता है । संभवतः यह विश्व का विशालतम संविधान है । उदाहरण के लिए , जहाँ अमेरिका के संविधान में 7 , कनाडा में 147 , स्विट्जरलैंड में 123 धाराएँ हैं , वहीं भारतीय संविधान में 395 धाराएँ , 22 भाग और 9 अनुच्छेद हैं । संविधान के विशाल होने का कारण यह है कि इसमें केंद्र एवं राज्य सरकारों की कार्य प्रणालियाँ , नागरिकों के अधिकार , नीति – निर्देशक तत्वों , संशोधन की व्यवस्था इत्यादि की वृहत चर्चा की गई है । जेनिंग्स ने इसे ‘ विश्व का सबसे लंबा और ब्योरेवार संविधान ‘ कहा है । एम ० भी ० पायली ने भी इसे विशालकाय संविधान ‘ ( An Elephantine Con stitution ) कहा है ।

संविधान के संशोधन की प्रक्रिया ( Process of Amendment ) :-

भारतीय संविधान के संशोधन की प्रक्रिया भी इसकी एक प्रमुख विशेषता है । नमनशील ( लचीला ) होते हुए भी इसमें अनमनशीलता के तत्व मौजूद हैं । यह न तो ब्रिटेन के संविधान की तरह अत्यधिक लचीला है और न ही अमेरिकी संविधान की तरह कठोर । इसमें संशोधन की प्रक्रिया का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है । संविधान का संशोधन संसद के बहुमत द्वारा , विशिष्ट बहुमत द्वारा या राज्य की विधानमंडलों की सहमति से किया जा सकता है । साथ – ही साथ आपातकाल में संविधान का स्वरूप आप – से – आप संघात्मक से एकात्मक हो जाता है । इस प्रकार भारतीय संविधान को नमनशील कहा जा सकता है परंतु इसमें अनमनशीलता के गुण भी मौजूद हैं । संशोधन की व्यावहारिक प्रक्रिया अत्यंत जटिल है । कुछ विशेष परिस्थितियों में संशोधन लाने के लिए संसद के दो – तिहाई बहुमत और आधे राज्यों की विधानसभाओं का समर्थन आवश्यक है । अगर संघ में और राज्यों में एक ही दल की सरकार नहीं हो तो संशोधन कठिन हो जाता है । यह स्थिति अमेरिका के संविधान से मिलती – जुलती है । अतः , स्पष्ट है कि लचीला होते हुए भी भारतीय संविधान कठोर है । अब तक इसमें 59 संशोधन हो चुके हैं ।

लोकसत्ता पर आधारित सर्वप्रभुत्वसंपन्न , लोकतांत्रिक , धर्मनिरपेक्ष , समाजवादी गणराज्य की स्थापना ( Establishment of a Sovereign , Demo cratic , Secular , Socialist Republic ) : –

भारतीय इतिहास से सबक लेकर संविधान के निर्माताओं ने राजतंत्र को समाप्त कर एक गणराज्य की स्थापना की । यह गणराज्य स्वयंप्रभु है , इसपर किसी विशेषी सत्ता का प्रभाव नहीं । यह संविधान जनता की मर्जी से , जनता द्वारा , जनता के लिए स्थापित किया गया है । इसका उद्देश्य भारत में धर्मनिरपेक्ष , समाजवादी लोकतंत्र की स्थापना है । संविधान की प्रस्तावना में इन उद्देश्यों को स्पष्ट कर दिया गया है । इस संविधान के उद्देश्य महान है । इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अनेक भारतीयों ने स्वाधीनता संग्राम में अपने प्राणों की बलि चढ़ाई । उन शहीदों की भावनाओं और उद्देश्यों को संविधान की धाराओं में समाहित कर संविधान निर्माताओं ने एक महान कार्य किया है ।

संसदात्मक प्रणाली की व्यवस्था ( The Parliamentary System ):-

संविधान के अनुसार भारत में संसदीय प्रशासनिक प्रणाली की व्यवस्था की गई है । अमेरिका की तरह राष्ट्रपति प्रणाली लागू नहीं की गई है । यद्यपि पिछले कुछ वर्षो से भारत में भी राष्ट्रपति प्रणाली स्थापित करने की संभावनाओं पर वाद – विवाद हो रहे हैं , फिर भी संसदात्मक व्यवस्था को ही बनाए रखा गया है । केन्द्र एवं राज्य दोनों ही जगहों में यही व्यवस्था है । इस व्यवस्था के अनुसार केंद्र और राज्यों में जनता द्वारा चुने गए बहुमत दल के प्रधान ( प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ) ही वास्तविक शासन – प्रधान होते हैं । राष्ट्रपति या राज्यपाल नाममात्र के संवैधानिक प्रधान होते हैं । वे मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही कार्य करते हैं । संसद या विधानमंडल ‘ अपने कार्यों के लए जनता के प्रति उत्तरदायी रहती है । अगर वह जनता की आकांक्षाएँ पूरी नहीं करती है तो जनता के हाथों में यह अधिकार सुरक्षित रहता है कि वह अगले चुनावों में सरकार को बिना क्रांति के बदल दे । 1977 ई ० के आम चुनावों में ऐसा ही हुआ जब काँग्रेस की सरकार को केंद्र एवं अन्य राज्यों से बिना किसी रक्तपात एवं क्रांति के आसानी से अपदस्थ कर दिया गया । इसके साथ – साथ हमें यह भी याद रखना चाहिए कि संसदात्मक प्रणाली के साथ – साथ राष्ट्रपति प्रणाली के भी तत्व भी संविधान में विद्यमान है । आकस्मिक विपत्ति के अवसर पर राष्ट्रपति के हाथों में अत्यधिक शक्ति चली जाती है । 31 · अक्टूबर , 1984 ई ० को प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की नृशंस हत्या के बाद जब मंत्रिमंडल स्वयंमेव भंग हो गई तो राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जैल सिंह ही शासन के वास्तविक प्रधान बन गए । उन्होंने ही भारत के नए प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई । इस स्थिति में कोई महत्वाकांक्षी राष्ट्रपति स्वयं भी शासन की बागडोर अपने हाथों में ले सकता था । अतः , संसदात्मक प्रणाली होते हुए भी राष्ट्रपति प्रणाली के गुण इस संविधान में पाए जाते हैं ।

संघात्मक एवं एकात्मक का मिश्रण ( Federal – cum – Unitary – Constitution ) : –

भारतीय संविधान की एक अन्य विशेषता यह है कि इसमें संघात्मक एंव एकात्मक संविधानों का गुण मौजूद है । यद्यपि संविधान के प्रावधानों के अनुरूप भारत में संघात्मक व्यवस्था ही कायम की गई है जिसके अनुसार सिद्धांत : राज्य सरकारों को आंतरिक प्रशासन , विधि निर्माण एवं न्यायपालिका के क्षेत्र में स्वायत्तता प्राप्त है फिर भी अनेक व्यवस्थाओं के द्वारा केंद्रीय सरकार कसे सुदृढ़ बनाने का प्रयास किया गया है । उदाहरण स्वरूप , दिल्ली का सर्वोच्च न्यायालय ( सुप्रीम कोर्ट ) का अन्य राज्यों के उच्च न्यायालयों पर नियंत्रण , संघवर्ती एवं समवर्ती अधिकारों की सूची , अवशिष्ट अधिकारों का केंद्र में सुरक्षित होना , एक नागरिकता की व्यवस्था इत्यादि अनेक तत्व ऐसे हैं जो एकात्मक संविधान का आभास देते हैं । संकटकाल में तो केंद्र के अधिकार और भी अधिक बढ़ जाते हैं । यह व्यवस्था भारत जैसे विशाल देश की एकता और अखंडता को एक सूत्र में बाँधे रहने के उद्देश्य से ही की गई थी । सामान्यतः केंद्रीय एवं राज्य सरकारों की सीमाओं का उल्लेख कर इसे संघात्मक स्वरूप ही प्रदान किया गया है ।

नागरिकों के मूलभूत अधिकार ( The Fundamental Rights of Citi zens ) : –

भारतीय संविधान के निर्माताओं ने तानाशाही प्रवृत्ति के विरुद्ध जनता की सुरक्षा के लिए संविधान में भारतीय नागरिकों के मूल अधिकारों का भी उल्लेख किया है । संविधान के तीसरे भाग में , 12 से 35 धाराओं में , इन अधिकारों की पूर्ति के लिए वह न्यायालयों की शरण ले सकता है , परंतु ये अधिकार भी सर्वोपरि नहीं है । इनपर कुछ सीमाएँ भी लादी गई है , उदाहरण के लिए , आपातकाल में इन अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है । इसके अतिरिक्त संसद कानून बनाकर इन अधिकारों में संशोधन कर सकती है या इन्हें समाप्त कर सकती है । इन्हीं अधिकरों का उपयोग कर 44 वें संशोधन के अनुसार ( 1979 ई ० ) संपत्ति संबंधी अधिकार मूल अधिकारों की सूची से अलग कर दिए गए । मूल अधिकरों से संबंधित अन्य संशोधन भी समय – समय पर किए गए हैं । मूल अधिकारों पर लगाए गए प्रतिबंधों से यह स्पष्ट हो जाता है कि ये नाममात्र को ही प्राप्त हैं । सरकार जब चाहे , इनका अपहरण कर सकती है या इन्हें निलंबित कर सकती है । सिद्धांततः ये अधिकार बहुत ही अच्छे हैं और सबको प्राप्त हैं , परंतु व्यावहारिक अवस्था भिन्न है ।

नागरिकों के कर्तव्य ( The Duties of Citizens ) : –

संविधान में यद्यपि मूलत : नागरिकों के अधिकारों का उल्लेख किया गया था परंतु नागरिकों के कर्तव्यों की चर्चा नहीं की गई थी । संविधान के 42 वें संशोधन ( 1976 ई ० ) के भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व ० श्रीमती इंदिरा गाँधी के प्रयासों से नागरिकों के कर्तव्यों को भी संविधान में समाविष्ट किया गया । इनकी प्रेरणा साम्यवादी ( चीन , रूस ) संविधानों से ली गई थी जहाँ नागरिक अधिकारों के साथ – साथ कर्तव्यों की चर्चा की गई है ।