मधमकालीन भारत इतिहास के स्रोत ( दिल्ली सल्तनत )
उत्तर : – दिल्ली सल्तनत में साहित्यिक स्त्रोतों का बाहूल्य इसलिए है क्योंकि मुसलमान , अरबों और ईरानियों के बीच इतिहास लेखन की परम्परा अत्यन्त विकसित थी । इनके ऐतिहासिक दृष्टीकोण में कुछ अन्तर भी था । उदाहरण के लिए अरबों द्वारा लिखित कुछ रचनाएँ सामान्य इतिहास से अधिक सम्बन्धित थीं । जबकि ईरानियों की रचना केवल राजदरबारों और शासकों की जीवनी और उपलब्धियों तक ही सीमित थी । चूँकि भारत आने वाले तुर्क शासक ईरान की सभ्यता एवं संस्कृति से अधिक प्रभावित हुए थे इसलिए दिल्ली सल्तनत में इतिहास लेखन की जो परम्परा विकसित हुई उसमें ईरानी परम्परा का ही प्रभाव है । दिल्ली सल्तनत के इतिहास सम्बन्धी स्त्रोत : – इस काल की रचनाओं को पांच श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है ।
1. सामान्य इतिहास से सम्बन्धि रचनाएँ : –
इस श्रेणी की रचनाओं में सारे विश्व अथवा कभी – कभी मुस्लिम जगत के सामान्य इतिहास का वर्णन किया गया है और इस संदर्भ में भारत में मुस्लिम शासन का भी उल्लेख किया गया है । ऐसी रचनाओं में ‘ मिनहाज सेराज की रचना ” तकात – ए – नासिरी ‘ का नाम लिया जा सकता है । इस रचना में इस्लाम में पूर्व विभिन्न पैगम्बरों की जीवनी का वर्णन है । इसमें इस्लाम की उत्पत्ति से लेकर इल्तुतमिश द्वारा संगठित शम्सी – सामन्तों के दल का इतिहास है । यह रचना 23 अध्यायों में विभक्त है जिन्हें तबकातक कहते हैं । इसमें ऐतिहासिक घटनाएँ और महापुरूषों की जीवनी संकलित हैं । इस रचना की सबसे ब्डी त्रुटि यह है कि इसमें तिथि क्रम पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया है , लेकिन इसका महत्व यह है कि भारत पर तुर्क आक्रमणों , दिल्ली सल्तनत का स्थापना और इल्तुतमिश के शासनकाल के लिए यह एकमात्र विश्वसनीय स्रोत है ।
भारत के इतिहास से विशेष रूप से सम्बन्धित ग्रन्थ : –
इस श्रेणी में वे रचनाएँ आती हैं जिनमें केवल दिल्ली सल्तनत के इतिहास का वर्णन है । इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण जियाउद्दीन बरनी की रचना ‘ तारिख – ए – फिरोज शाही ‘ है जो 1357 ई ० में पूरी हुई । इसमें इल्तुतमिश के शासनकाल के बाद की घटनाओं से लेकर फिरोज शाह तुगलक के शासनकाल के आरम्भिक 6 वर्षों का उल्लेख है । अत : ‘ तबकात – ए – नासिरी ‘ का वर्णन जहाँ समाप्त होता है , वहाँ से आगे की घटनाएँ इस पुस्तक में मिलती है । बरनी की रचना आम तौर से विश्वसनीय है और इसके द्वारा उल्लिखित अनेक घटनाएँ स्वंय उसके सामने घटीं थी । लेकिन बरनी की पुस्तक में एक महत्वपूर्ण दोष यह है कि बरनी अपने संकीर्ण विचारों के अनुसार ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ – मरोड़ कर प्रस्तुत करता है । मुहम्मद- – बिन तुगलक के सम्बन्ध में उसका वर्णन विशेष रूप से पक्षपातपूर्ण है ।
3. ऐतिहासिक रचनाएँ जिनमें नैतिक आदेश निहित हैं : –
इस श्रेणी में शमसे – सिराज अफीफ की रचना “ तारीखे – फिरोज शाही ” का नाम लिया जा सकता है, जिसमें फिरोज तुगलक के शासन काल की घटनाओं ( 1351 – 88 ) का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है । जहाँ एक ओर इस रचना में राजनैतिक , प्रशासनिक एवं यदा – कदा सामाजिक और आर्थिक जीवन का वर्णन किया गया है , वहीं इसमें शासकों की नीतियों का औचित्य अथवा दोष भी समझाने का प्रयास किया गया है । अफीफ द्वारा इतिहास लेखन में यह एक नई परम्परा का आरम्भ था जो आगे चलकर अबुल फजल द्वारा अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँची ।
4. प्रशस्तियाँ :-
अनेक शासकों के काल में उनकी उपलब्धियों का विभिन्न रचनाओं में वर्णन किया गया है जिनका उद्देश्य शासक की महानता एवं उसके गुणों का वर्णन करना है । ऐसी प्रशस्तियों में सबसे महत्वपूर्ण बदरूद्दीन द्वारा रचित ” शाहनामा ‘ है जो मुहम्मद – बिन – तुगलक के लिए लिखी गई है 1 साहित्य के दृष्टिकोण से यह रचना विशेष रूप से महत्वपूर्ण नहीं है , लेकिन ऐतिहासिक जानकारी के लिए इसका महत्व है ।
5. साहित्यिक रचनाएँ जिनका ऐतिहासिक महत्व भी है : –
इस श्रेणी में अमीर खुसरो की अनेक रचनाओं का नाम लिया जा सकता है । इनमें पहली रचना ” खजाएनुल फुतूह ” है जिसमें अलाउद्दीन के शासनकाल के आरम्भिक 16 वर्षों का वर्णन है और जो लाउद्दीन के शासन काल की एकमात्र समकालीन रचना है । इसके अतिरिक्त मलिक काफूर के दक्षिणी अभियानों का विस्तृत वर्णन इसी रचना में मिलता है । यूँ तो अमीर खुसरो को 90 से अधिक पुस्तकों का रचयिता माना जाता है लेकिन इनमें से अधिकतर उपलब्ध नहीं हैं । राजनैतिक घटनाओं के अतिरिक्त , अमीर खुसरो की रचनाएँ सल्तनत कालीन भारत के सामाजिक एवं सांस्कृतिक , जीवन के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्रदान करती हैं । ऐसी रचनाओं में ‘ नुह सिपहर ‘ और ‘ इजाज ए – खुसरवी ‘ विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं । दिल्ली सल्तनत से सम्बन्धित एक अन्य ऐतिहासक रचना , ‘ फुतूहस्सलातीन ‘ है जो 1350 ई ० में इसामी द्वारा लिखी गई । इसके अतिरिक्त यह एक महाकाव्य के रूप में है जिसमें गजनी के राज्य के उदय से लेकर मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल तक की घटनाओं का वर्णन है । बरनी और इसामी समकालीन लेखक हैं और इनकी रचनाएँ एक – दूसरे की पूरक भी हैं ।
प्रशासनिक सिद्धान्त सम्बन्धी रचनाओं में सबसे महत्वपूर्ण रचना जियाउद्दीन बरनी की ” फतावाय जहाँदारी ” है । इसमें प्रशासनिक सिद्धान्तों और आदर्शों पर विचार प्रकट किया गया है और सल्तनत कालीन प्रशासन और सुल्तानों को प्रशासनिक नं तियों को समझने में यह रचना अत्यन्त सहायक है । अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नियन्त्रण नीति को समझने में भी इस रचना से सहायता मिलती है ।
6. सूफी – सन्तों से सम्बन्धित ऐतिहासिक ग्रन्थ : –
सल्तनत काल में सन्तचरित्र सम्बन्धी ग्रन्थों की रचना भी हुई । इन ग्रन्थों में सूफियों के जीवन चरित्र , सैद्धान्तिक व्याख्याओं एवं धार्मिक कर्मकाण्डों पर विचार किया गया । शायर अमीर हसन सिजजी के ” फवादुल पुवायद ” से तत्कालीन समाज पर प्रकाश पड़ता है । ” खैरूल मजालिस ” का लेखक हामिद कलन्दर था । सूफियों के जीवन सम्बन्धी संक्षिप्त लेखों में से एक पुराना ‘ तजकिरा ‘ मीर खुर्द का है जिसने चिश्ती सम्प्रदाय के भारतीय सूफियों के विवरण का संकलन ” सियरूल औलिया ” नामक शीर्षक से किया था । शेख जमाली द्वारा संकलित ‘ सियरूल आरेफिन ‘ में भी उसी विषय का वर्णन है किन्तु इसमें कुछ ऐसे अतिरिक्त ब्योरे मिलते हैं जो अन्यथा उपलब्ध नहीं हैं । भारतीय सूफियों का सामान्य इतिहास अब्दुलहक देहलवी का ‘ अखबारूल अखियार ” है । मुहम्मद गौस के ” गुलजारे अबरार ” में अनेक सूफियों का विवरण है जिनके जीवन और कार्य – कलाप में हमें सुलतानों के समय की अनेक . रोचम सामाजिक और राजनीतिक पद्धतियों का ज्ञान प्राप्ति होता है । ऐसा नहीं है कि पुरातत्व सम्बन्धी स्त्रोतों का सल्तनत कालीन इतिहास के अध्ययन के लिए अभाव है । इसके विपरीत इस काल के भवन अब भी सुरक्षित स्थिति में हैं जिनसे भवन निर्माण कला , तण कला , आर्थिक सम्पदा एवं हिन्दू इस्लामी संस्कृति के विकास की पद्धति को समझने में सहयोग मिलता है । सुरक्षित स्थिति में मौजूद भवनों के अतिरिक्त अनेक भग्नावशेष समस्त भारत में बिखरे पड़े हैं जो सल्तनत कालीन शासकों की उपलब्धियों के स्मारक हैं । अभिलेख और सिक्के भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है । कम महत्वपूर्ण शासकों , जिनका विस्तृत वर्णन ऐतिहासिक रचनाओं में नहीं है , के शासनकाल की विभिन्न घटनाओं की तिथि या उनके राज्य की सीमा निर्धारित करने में इनसे सहायता ली जाती है । लेकिन तुलनात्मक रूप से देखने पर यह स्पष्ट है कि साहित्यिक स्त्रोत अधिक महत्वपूर्ण हैं और अधिक सहायक भी ।
दिल्ली सल्तनत के स्रोतों का वर्णन करें
मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोत ( दिल्ली सल्तनत )
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