बलवंत के कार्य और उपलब्धियों

गयासुद्दीन बलबन – कार्य ,सिद्धांत, उपलब्धियां , लौह रक्त नीति , चरित्र ,मूल्यांकन

बलबन का शासन काल सल्तनत के स्थिरीकरण का काल था । सल्तनत को अनेक संकटों से गुजरना पड़ा था । ये संकट सभी क्षेत्रों में थे ; जैसे , सल्तनत का राजनीतिक संगठन राजपद की दुर्बलता के कारण प्रभावहीन हो गया था और अमीरों की महत्वाकांक्षाएँ तथा द्वेष सल्तनत की सैनिक शक्ति को दुर्बल कर रहे थे । बलबन ने प्रधानमंत्री के रूप में इन समस्याओं को हल करने का प्रयास किया । सुल्तान बनने के बाद सल्तनत को दृढ़ संगठित राज्य बनाने के लिए उपाय किये और सल्तनत को विनाश से बचाया । उसे जिन समस्याओं का सामना करना पड़ा और उसकी जो उपलब्धियाँ थीं , वे निम्नलिखित हैं । वास्तव में उसका सम्पूर्ण जीवन काल आन्तरिक समस्याओं तथा विदेशी संकटों से संघर्ष करने का काल था । बलबन के समक्ष समस्याएँ

( 1 ) राजपद की दुर्बलता –

इल्तुतमिश के उत्तराधिकारियों के काल में सुल्तान पद की प्रतिष्ठा नष्ट हो गयी थी । अतः उसकी प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करना ।

( 2 ) अमीरों की शक्ति –

चालीस अमीरों का दल शक्तिशाली था । इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद इस शक्तिशाली दल ने राजसत्ता पर अधिकार कर लिया था । बलबन इसी दल का सदस्य था । उसने भी सुल्तान अलाउद्दीन मसूदशाह और सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद के कालों में राज्य पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था । यद्यपि प्रधानमंत्री काल में बलबन ने अमीरों को दुर्बल करने का प्रयत्न किया था लेकिन अभी भी वे पर्याप्त शक्तिशाली थे ।

( 3 ) राज्य की सुरक्षा –

राज्य की सुरक्षा की गम्भीर समस्या थी । उत्तर – पश्चिम में मंगोलों ने पंजाब पर कब्जा कर लिया था और दिल्ली की ओर बढ़ने की आशंका बनी रहती थी । उनकी प्रगति को रोकना आवश्यक था । पूरब में बंगाल स्वतंत्र हो गया था । प्रधानमंत्री काल में बलबन ने बिहार को बंगाल से पृथक् करके सल्तनत में सम्मिलित कर लिया था लेकिन बंगाल पर नियंत्रण करने में उसे सफलता नहीं मिली थी । बंगाल को जीतना आवश्यक था जिससे अन्य प्रान्त बंगाल का अनुकरण न कर सकते ।

( 4 ) हिन्दू राजाओं की आक्रामक नीति –

दोआब , मालवा , बुन्देलखण्ड और राजस्थान के राजाओं ने सैनिक शक्ति को संगठित करके तुर्कों के विरुद्ध आक्रामक रुख अपना लिया था । सल्तनत के स्थिरीकरण के लिए इनको नियंत्रित करना आवश्यक था ।

( 5 ) मेवात और कटेहर –

दिल्ली के दक्षिणी मेवाती लोगों के विद्रोह का बलबन दमन नहीं कर पाया था । वे दिल्ली में लूटमार करने के लिए अचानक हमला कर देते थे । उनके भय के कारण दिल्ली नगर का पश्चिमी दरवाजा बंद कर दिया गया । पश्चिमी दोआब के कटेहर क्षेत्र में हिन्दू सामन्त वर्ग अत्यन्त शक्तिशाली था जिसके कारण पूरब का मार्ग सुरक्षित नहीं था ।

( 6 ) आर्थिक समस्या –

विद्रोहों , सीमान्त सुरक्षा के कारण आर्थिक समस्या थी । राजकोष रिक्त था । सैनिक संगठन के लिए धन की आवश्यकता थी । अशान्ति तथा अव्यवस्था के कारण आय में कमी हो रही थी । विद्रोहों तथा युद्धों के कारण भी आर्थिक समस्या जटिल हो गई थी ।

समस्याओं का निराकरण रक्त और लौह नीति –

इन समस्याओं को हल करने तथा राज्य का सुदृढीकरण करने के लिए बलबन ने ‘ रक्त और लौह ‘ की नीति अपनायी । उसने शक्तिशाली सेना का संगठन किया और निर्दयता तथा कठोरता से विद्रोहों का उन्मूलन किया । उसने विद्रोहियों का नरसंहार भी किया और अमीरों को कठोर दण्ड दिया । इस प्रकार की आतंक नीति से उसने राज्य में व्यवस्था स्थापित करने में सफलता प्राप्त की । इसके लिए उसने जो कार्य किये , वे निम्न प्रकार थे

चालीस अमीरों के दल का दमन-

सुल्तान पद की प्रतिष्ठा तथा निरंकुश शक्ति की स्थापनों के लिए चालीस अमीरों के दल को नष्ट करना आवश्यक था । यह दल उच्च पदों पर एकाधिकार का दावा करता था और सुल्तान पर नियंत्रण रखना चाहता था । उनका अहंकार , स्वार्थी दृष्टिकोण , पारस्परिक ईर्ष्या और संघर्ष सल्तनत की सुरक्षा के लिए हानिकारक थे । अतः बलबन ने इस दल को नष्ट करने का निश्चय किया । प्रथम , उसने निम्नकोटि के तुर्कों को उच्च पदों पर नियुक्त किया और उन्हें इस दल के अमीरों के समकक्ष बना दिया । द्वितीय , उसने साधारण अपराधों के बहाने इस दल के अमीरों को कठोर दण्ड दिया । बदायूँ के गवर्नर मलिक बकबक को इतना पिटवाया कि वह मर गया । अवध के गवर्नर हैबात खाँ को कोड़े लगवाये । एक अन्य अमीर को नगर के फाटक पर लटकवा दिया क्योंकि वह बंगाल में पराजित होकर भाग आया था । तृतीय , उसने अपने चचेरे भाई शेर खाँ को विष देकर मरवा डाला । इस प्रकार उचित – अनुचित उपायों से बलबन ने इस दल को नष्ट कर दिया ।

गुप्तचर विभाग का संगठन –

अमीरों पर नियंत्रण रखने के लिए तथा प्रान्तों की सूचना प्राप्त करने के लिए बलबन ने गुप्तचर विभाग का गठन किया । प्रत्येक प्रान्त , जिले और नगर में गुप्तचर नियुक्त किये गये । बलबन ने स्वामिभक्त , निष्ठावान सेवकों को गुप्तचर विभाग के पदों पर नियुक्त किया जो प्रतिदिन सुल्तान के पास समाचार भेजते थे । डॉ . ए . एल . श्रीवास्तव लिखते हैं कि ” बलबन की शासन व्यवस्था सुचारु रूप से चल सकी , इसका मुख्य श्रेय उसके गुप्तचर विभाग को है । इस प्रकार सुसंगठित गुप्तचर व्यवस्था बलबन के निरंकुश शासन का आधार बन गई । ”

सेना का संगठन–

बलबन की निरंकुश सत्ता का आधार सैनिक शक्ति थी । एक कुशल संगठित सेना के द्वारा ही वह राज्य का सुदृढ़ीकरण कर सकता था । अतः उसने सेना के संगठन पर विशेष ध्यान दिया जिससे आन्तरिक और बाह्य सुरक्षा की जा सके । साथ ही एक शक्तिशाली सेना के द्वारा सुल्तान की निरंकुश शक्ति की रक्षा की जा सकती थी तथा अमीरों पर नियंत्रण रखा जा सकता था । पिछले वर्षों में राजनीतिक उथल – पुथल तथा अमीरों की अनुशासनहीनता के कारण सैनिक संगठन में दुर्बलता आ गई थी । बलबन ने सबसे पहले सैनिकों की संख्या में वृद्धि की और योग्य अधिकारी नियुक्त किये । उसने सैनिकों के वेतन में वृद्धि की । लेकिन सेना की दुर्बलता का मुख्य कारण अक्ता प्रणाली थी । कुतुबुद्दीन के समय से सैनिकों को वेतन के बदले में भूमि कर का भाग या भूमि देने की प्रणाली थी । इल्तुतमिश ने इस प्रणाली को जारी रखा । यह अक्ता या जागीर प्रणाली अकुशलता तथा भ्रष्टाचार का स्रोत बन गई । ये सैनिक या अक्तादार स्वयं को भूमि का स्वामी समझते थे और उनके उत्तराधिकारी भी इन पर अपना स्वामित्व रखते थे । बलबन ने देखा कि इस प्रकार के अक्तादार सैनिकों की या तो मृत्यु हो गई थी या वे वृद्ध हो गये थे और प्रायः सैनिक कर्तव्यों का पालन नहीं करते थे या अपने स्थान पर अपने सेवकों को भेज देते थे । सेना को कुशल बनाने के लिए उसमें युवक सैनिकों को रखना तथा उनसे नियमित रूप से कर्तव्य पालन कराना आवश्यक था । इसलिए बलबन ने सेना में मुख्य रूप से दो सुधार किये –

( i ) वृद्धों , अनाथों और विधवाओं से भूमि वापस ले ली गई और उन्हें नकद पेंशन देने का आदेश दिया गया ।

( ii ) जो युवक थे तथा सैनिक सेवा के योग्य थे , उनकी अक्ता ( जागीरें ) उनके पास रहने दी गयीं लेकिन उनकी जागीरों से कर संग्रह का कार्य राजस्व अधिकारियों को सौंपा गया और जागीरदारों को नकद वेतन देने का आदेश दिया गया ।

ये आदेश सेना के पुनर्गठन के लिए अत्यावश्यक थे । बरनी लिखता है कि कोतवाल फखरुद्दीन की प्रार्थना पर बलबन ने वृद्ध जागीरदारों के पास उनकी जागीरें रहने दीं । बलबन ने सैनिकों को भूमि – कर प्रदान करने की प्रथा जारी रखी और ऐसा कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है कि उसने नकद वेतन प्रथा आरम्भ की हो । सेना के संगठन और सुधार में बलबन को अपने सुयोग्य सेना मंत्री ( दीवान – ए – आरिज ) से सहयोग मिला था ।

विद्रोहों का दमन –

राज्य में जनकल्याण तथा शान्ति के लिए आवश्यक था कि विद्रोहों का दमन किया जाये । राज्य के स्थिरीकरण के लिए भी यह आवश्यक था । बलबन ने कठोरता से विद्रोहों का दमन किया ।

( i ) मेवातियों का दमन-

बलबन ने सर्वप्रथम मेवातियों का दमन किया । ये लोग दिल्ली के समीप रहते थे और दिल्ली में लूट – मार करके जंगलों में छिप जाते थे । उनके कारण दिल्ली में अशान्ति तथा असुरक्षा बनी रहती थी । राज्यारोहण के अगले वर्ष ही बलबन ने इनका दमन किया । उसने पुनर्गठित सेना के द्वारा एक वर्ष तक उनके विरुद्ध अभियान किये । उसने जंगलों को साफ कराकर उनके छिपने के स्थानों को नष्ट कर दिया और उनके लुटेरे समूहों को मार डाला । उन पर नियंत्रण रखने के लिए दिल्ली के दक्षिण में एक दुर्ग का निर्माण कराया और उसमें सैनिकों को स्थायी रूप से रखा । इस प्रकार के सैनिक केन्द्र दिल्ली के आस – पास स्थापित किये गये । इस प्रकार मेवाती समस्या को हल किया गया । करीब एक लाख मेवाती मारे गये । स्मिथ लिखते हैं कि ” सुल्तान की आज्ञा से कितने ही विद्रोही हाथियों के नीचे कुचल दिये गये और कितने ही मेवातियों को तुर्की ने मौत के घाट उतार दिया । लगभग सौ मेवातियों की खाल खिंचवाकर भूसा भरवा दिया गया तथा उनमें से कुछ को दिल्ली के प्रसिद्ध दरवाजों पर टांग दिया गया ।

( ii ) दोआब में विद्रोहियों का दमन –

दोआब में राजपूतों का विद्रोह तुर्क सल्तनत के लिए प्रारम्भ से ही गम्भीर समस्या रही थी । वे शक्तिशाली थे और उन्होंने तुर्क सत्ता को प्रभावी ढंग से स्थापित नहीं होने दिया था । शक्ति के केन्द्र कम्पिल , भोजपुर , पटियाली , बदायूँ तथा अमरोहा थे । बलबन ने मेवातियों के बाद दोआब ध्यान दिया और यहाँ भी ‘ रक्त और लौह ‘ की नीति को निर्दयता तथा कठोरता से लागू किया । उसने क्षेत्र को कई सैनिक कमाण्डों में विभाजित किया और प्रत्येक क्षेत्र को जागीर के रूप में सैनिक अधिकारी को दिया गया जिसका कार्य अपने क्षेत्र में जंगलों को साफ करना और विद्रोहियों को नष्ट करना था । बलबन स्वयं पटियाली के निकटवर्ती क्षेत्र में गया और समस्त अभियानों का निरीक्षण किया । जंगलों को साफ करके सड़कें बनवायी गयीं और विद्रोही केन्द्रों में दुर्गों का निर्माण करके दुर्धर्ष अफगान सैनिकों को वहाँ रखा गया ।

( iii ) कटेहर में विद्रोह –

बलबन के कठोर सैनिक उपायों का भी दोआब के कटेहर अमरोहा ) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और हिन्दू विद्रोहियों की संगठित शक्ति के सामने उसके अधिकारी दुर्बल और असहाय सिद्ध हुए । बलबन ने कठोरता से विद्रोह के दमन करने का निश्चय किया । दिल्ली आकर उसने एक बड़ी सेना एकत्रित की और अचानक कटेहर पर आक्रमण कर दिया । गाँवों को जला दिया और सभी पुरुषों का कत्लेआम किया गया । स्त्रियों और बच्चों को दास बना लिया गया । समस्त क्षेत्र को उजाड़ दिया गया और सुल्तान ने आतंक स्थापित कर दिया । बरनी लिखता है कि ” विद्रोहियों का रक्त नाले के रूप में बह निकला , गाँवों तथा जंगलों में मुर्दों के ढेर लग गये , मुर्दों की दुर्गन्ध गंगा नदी तक पहुँच गई । लोग इतने भयभीत हो गये कि तीन वर्ष तक बदायूँ से अमरोहा तथा सम्भल तक के व्यक्तियों ने सर उठाने का साहस नहीं किया । ”

( iv ) पंजाब में विद्रोहियों का दमन –

दोआब के बाद बलबन ने पंजाब में विद्रोहियों का दमन किया । ने इसका उल्लेख तारीख – ए – मुबारकशाही में है । नमक क्षेत्र की स्वतंत्र जातियों ने उसका नियंत्रण अस्वीकार कर दिया था । बलबन ने इस क्षेत्र के शासक को परास्त करके विद्रोह का दमन किया । इसके उपरान्त उसने लाहौर को जीता और सीमा सुरक्षा के लिए दुर्गा का निर्माण कराया ।

( v ) बंगाल के विद्रोह का दमन –

बंगाल के सूबेदार तुगरिल ने यह देखकर कि सुल्तान वृद्ध हो गया है । और उत्तर पश्चिम की मंगोल समस्या में फँसा हुआ है , विद्रोह कर दिया । दिल्ली से दूरी होने के कारण तथा बंगाल की समृद्धि से बंगाल के सूबेदार सदैव स्वतंत्र होने का प्रयास करते रहे थे और दिल्ली के सुल्तानों के लिए यह एक स्थायी समस्या थी । बलबन ने इस विद्रोह को समाप्त करने तथा समस्या को स्थायी रूप से हल करने का प्रयत्न किया । तुगरिल बलबन का तुर्क गुलाम था और उसने ही तुगरिल को बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया था । अतः तुगरिल के विद्रोह से वह अत्यन्त क्रोधित हुआ । बलबन ने स्वयं बंगाल जाने का निर्णय लिया । वह दो लाख सेना तथा अपने कनिष्ठ पुत्र बुगरा खाँ के साथ बंगाल की राजधानी लखनौती पहुँच गया । तुगरिल का युद्ध करने का साहस नहीं हुआ और वह भाग गया । अन्त में तुगरिल पकड़ा गया और उसे तथा उसके समर्थकों को फाँसी पर लटका दिया गया । बुगरा खाँ को बंगाल का सूबेदार नियुक्त करके सुल्तान दिल्ली लौट आया ।

इन विद्रोहों के दमन से राज्य में शान्ति और सुव्यवस्था स्थापित हो गई । इसके बारे में बरनी लिखता है कि तुगरिल के दमन के पश्चात् सुल्तान की सत्ता लोगों के हृदय में स्थापित हो गई और राज्य के सभी क्षेत्रों में शान्ति और व्यवस्था दिखायी देने लगी ।

मंगोल आक्रमण –

मंगोल आक्रमण की आशंका के कारण बलबन ने उत्तर – पश्चिम सीमा की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया और इसी कारण उसने नवीन प्रदेशों की नीति को त्याग दिया । अपने शासन काल में उसने विद्रोहों का दमन करके राज्य को संगठित करने तथा मंगोलों के विरुद्ध सीमा सुरक्षा नीति पर जोर दिया । दिल्ली सुल्तानों में वह पहला सुल्तान था जिसने सीमा सुरक्षा की ओर ध्यान दिया । उसकी सीमा सुरक्षा नीति की विशेषताएँ इस प्रकार थी- ( 1 ) लाहौर पर अधिकार करके उसे मुल्तान प्रान्त का पृथक् भाग बनाया गया । ( 2 ) उत्तर – पश्चिम की सीमा पर नवीन दुर्ग श्रृंखला का निर्माण किया गया तथा पुराने दुर्गों की मरम्मत कराई गई । ( 3 ) इन दुर्गों में अनुभवी और बलिष्ठ सैनिकों को रखा गया । ( 4 ) समस्त उत्तर – पश्चिम की सीमा के लिए एक सेनापति नियुक्त किया गया । बलबन ने इस पद पर अपने चचेरे भाई शेरखों को नियुक्त किया जो उस समय योग्यतम सेनापति था । 1270 ई . में शेरखाँ की मृत्यु हो जाने पर बलबन ने अपने पुत्रों – मुहम्मद खाँ और बुगरा खाँ को सीमा रक्षक नियुक्त किया । 1279 ई . में बुगरा खाँ को बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया गया और सौमा का पूर्ण उत्तरदायित्व मुहम्मद को सौंपा गया । 1285 के बाद मंगोलों के आक्रमण तीव्र हो गये । 1286 ई . में मंगोलों के आक्रमण में मुहम्मद मारा गया ।

1287 ई . में बलबन की मृत्यु हो गई । अपने प्रिय और योग्य पुत्र मुहम्मद की मृत्यु बलबन के लिए भीषण आघात था । इस दुःखमय अवस्था में उसका अन्त हो गया । मृत्यु के समय उसने मुहम्मद के पुत्र कैखुसरव को “ अपना उत्तराधिकारी मनोनीत किया । अपने 22 वर्षों के शासन में बलबन ने सल्तनत को शक्तिशाली बनाया और उसकी सुरक्षा की । इन्हीं उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए उसने नवीन क्षेत्रों की विजय की नीति का परित्याग किया था । उसका शासन काल सल्तनत के स्थिरीकरण , संगठन और सुदृढ़ीकरण का काल था ।

इल्तुतमिश की उपलब्धियों का वर्णन करें https://buildupeducation.com/?p=336

. https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%